Sadhana Shahi

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विरासत (कविता) 15-May-2024

विरासत (कविता) प्रतियोगिता हेतु

तूने मेरी विरासत ले ली है, पर किस्मत ले नहीं पाओगे।

मेरी मुट्ठी में मेरी किस्मत है, क्या छीन उसे ले जाओगे।

तुम मेरी विरासत ले ख़ुश हो, एक दिन मूरख पछताओगे।

मेरी श्रम का कोई कतरा, तुम चाह के भी छू पाओगे?

सद्बुद्धि नहीं जब पास तेरे, क्या इसका लाभ उठाओगे?

रावण और कंस के जैसे तुम, इससे विनाश को पाओगे।

ज्ञान, शील का मोल न जाने, गुण,धर्म भी जान न पाओगे।

ऐ सठ! तुमको क्या समझाऊंँ, अवनति पथ पर बढ़ जाओगे।

साधना शाही, वाराणसी

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1 Comments

जी सुंदरतम अभिव्यक्ति।

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